अंग्रेजी में एक कहावत है जो कहता है कि हर सफ़ल पुरुष के पीछे कोई न कोई स्त्री का हाथ ज़रूर होता है। भगवान की अत्यंत खूबसूरत सृजन नारी है। फ़ूल की कलियों की तरह नारी नाज़ूक, भोली और अतिसूक्ष्म होती है। वह समाज की रंगभूमि में कई सारे पात्र, अत्यंत सफ़लतापूर्वक रूप से निभाती है, जैसे माता, बहन, पुत्री, सखी, भार्या आदि। नारी की पीड़ा हर एक मोड़ पर अलग होती है, किन्तु सब हसी - ख़ुशी सहकर जीवन के पथ पर राजगती से बढ़ती है। नौ मासों की वह पीड़ा जो एक माँ सहती है, उसका उल्लेख कदापि नहीं किया जा सकता। लेकिन उसके विपरीत, माँ को अपनी संतान की पालन - पोषण करना अत्यंत सुखद और सहज लगता है। इस स्थिति को वह कभी पीड़ा का नाम नही प्रदान करती। भारतवर्ष की पुण्यभूमि में तो स्त्रियों को इतना सम्मान दिया जाता है कि वे दुर्गा, नारायणी, सरस्वती आदि देवियों के रूप में पूजित हैं। लेकिन, शायद कलियुग की दुष्प्रभाव से नारी का सम्मान घटता जा रहा है। जो नारी अपने पुत्र की पोषण कठिनतम रूप से करती है, वही पुत्र सयानी होकर नारी का अपमान और बलातकार करे, तो उस माँ की पीड़ा अद्वितीय और असहनीय होगी। पुरुषों को कभी इस बात की आशंका तक नहीं आनी चाहिए कि स्त्रियाँ उनसे कम हैं, उनके बराबरी नही कर पाते। स्त्री को जब क्रोध आता है, तब उस क्रोध की ज्वालाग्नि सारे संसार को भस्म करने की शक्ति रखती है। आज के हर अख़बार में एक न एक बलातकार की ख़बर देश के किसी न किसी कोने में घटित मिलेगा। भगवान के इन नाज़ूक कलियों को अगर कम समझ के हानी पहुँचाने की प्रयत्न तक किया जाए तो उसी कली का काँटा चुबकर अत्यंत दर्द पहुँचाएगा।भारत देश की इस महान और अनोखी भूमि में क्या ऐसी घटनाएँ शोभा देती है? क्या भगवान की पुत्रियों का यह हाल न्यायपूर्ण है? भारत के लोगों को ऐसा कलंक कभी शोभा नहीं देता कि जिस भूमि को नारी का स्थान प्रदान कर के पूजा किया जाता है, उसी भूमि पर, नारी पर इतना ज़ुल्म और अत्याचार की पाप करना असह्य है। द्रौपदी को भगवान श्रीकृष्ण ने मान हानि से वस्त्र प्रदान करके बचाया था। द्वापर युग में तो भगवान मनुष्य के सम्मुख उपस्थित थे। लेकिन कली युग में 'सभ्य' लोग भगवान को कहाँ ढूँड़े? शायद इसका उत्तर उनमें ही छिपा है। उनकी प्रतिक्रिया अगर दैवत्व से सुसर्जित होगा, तो महिला को मान हानि का भय कभी तंग नहीं करेगा।
कहाँ गया वह देश, जिस देश में नारी पूजनीय और अत्यंत सम्मानित हैं? कहाँ गए वे सभ्य लोग जिनमे सीता मय्या और भगवान श्री राम बसते हैं? कहाँ गया वह सभ्य समाज जो नारी का हर दम रक्षा करने के लिए तत्पर है?
यह सब हम भारतवासियों में ही है। बस, हमें इन गुणों को पहचान कर, उनको जागृत करना है। हमें समाज की कुरीतियों को ऐसे तोड़ देना चाहिए कि वह कभी जुड़कर हमारी ज़िंदगी को बर्बाद न कर पाए।
याद रहे कि हर व्यक्ति स्वभाव से सभ्य, सुशील और अच्छा ही होता है। जब कली का दुष्प्रभाव से लोगों के दिलों मे उपस्थित सूर्य के किरणें असभ्यता के घन मेघ को भेद नहीं कर पाते, तब अगर सभ्यता की वायू उन बादलों को अतिवेग से उड़ादे तो फ़िर से समाज में रामराज्य की पुनर्स्थापन होगी। हमारी गर्वी हिंदुस्तान को न कभी कोई कुरीति तोड़ पाई है, ना ही तोड़ पाएगी। भारत भूमि की सनातन सभ्यता पर पूरे विश्व को गर्व है। प्रत्येक भारतवासी का यह कर्तव्य है कि भारत की शीश कभी न झुकने दे। हमें विश्वास है कि जिस तरह धर्मग्रंथों में नारी का दैवीय उल्लेख किया हुआ है, उसी तरह सम्मान दिया जाएगा।
भारत का शीश कभी नहीं झुकेगा। भारत का सर ऊँचा था, ऊँचा है और सदा सर्वदा ऊँचा रहेगा।
जय माता भारती!